चोटी की पकड़–52

जिस तरफ जमादार को छिपने के लिए कहा था, उस तरफ मुन्ना नहीं गई। कहा, "आज चलो, इधर का बागीचा देख लो। एक रोज में पूरा देखा न देख जाएगा।"


हवा के मंद-मंद झोंके लग रहे हैं। दुःख के बाद सुख का अनुभव हुआ। मुन्ना ने पूछा, "कैसी हवा है?"

"बहुत अच्छी।"

"दिल इसी तरह खुला रखा करो। कोई दिलदार मिल जाए इस वक्त तो?"

"धत्, ऐसा नहीं कहा जाता।"

"अच्छा, सखी, हम से ग़लती हुई। पर हमारा-तुम्हारा तो हँसी-मज़ाक का ही रिश्ता है?"

"हाँ, है।"

बुआ की आवाज क्षीण होकर निकली।

"अगर हमारा अपमान हो तो क्या वह तुम्हारा भी है?"

बुआ भीतर से जल गईं। उस जलन को दबाकर कहा, "हाँ, है।"

"हमारा इतना अपमान होता है कि हम किसी को सिर पर नहीं रख सकते। बाद को सखी बनाकर, हँसाकर, रिझाकर समझा देते हैं कि हम सखी हैं और ऐसी।"

"हमारे भाग।" बुआ ने नम्रता से कहा।

"देखो, यह नारियल का पेड़ है। सरोवर के चारों ओर पहले इसी की कतार है। फिर उस किनारे से है। दोनों कतारों में नारियल की बीसियों किस्में हैं। कच्चे नारियल को डाब कहते हैं। इसका पानी तुमने पिया है।"

"हमारे यहाँ यह पेड़ नहीं होता।"

मुन्ना आगे बढ़ी। कहा, "यह देखो, ये अनानास के झाड़ हैं।"

"अनानास क्या है?"

"यह लीची है।"

"हाँ, हमारे यहाँ आती है।"

मुन्ना जल्दी कर रही थी। कहा, "यह शरीफा है।"

"यह भी हमारे यहाँ नहीं होता।"

"ये सुपारी के पेड़ हैं। वह देखो, सुपारी फली है।"

बुआ खुश हो गईं। मुन्ना बढ़ती गई।

"यह बादाम का पेड़ है।"

"वही जो ठंढ़ाई में पड़ता है?"

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